रविवार, 8 दिसंबर 2013

तमन्नायें...

कहीं से प्यार की बातें.....कहीं से रोने की आहटें....कहीं पसरा सन्नाटा....कहीं से खिलखिलाने की आवाज़ें....ये हॉस्टल है मेरा । एक ही छत के नीचे ना जाने कितने रंग देखने को मिलते है हर दिन....जब कभी भी कमरे से बाहर निकलो तो हर एक चेहरा नयी रंगत लिये होता है ।बस फर्क़ इतना है कि कोई बेपनाह ख़ुश होता है तो कोई बेईंतेहां मायूस....हर किसी की एक वजह है अपनी इस रंगत की....मुझे लगता है यहां हर एक को ज़रूरत है एक सच्चे दोस्त और सच्ची मोहब्बत की...... ये मन भी कितना अजीब होता है,कोई इसलिये प्यार में नहीं पड़ना चाहता क्योंकि उसका मन उन पाबंदियों से आज भी बाहर नहीं आ पाया है जो घर से लगाकर भेजी गयी थी....कोई दोस्ती तक करने को आज़ाद नहीं है क्योंकि उन्हे बड़ों की सीख रह-रह कर याद आ जाती है....लेकिन कोई भी ऐसा भी नहीं है जो अपने ही मन से प्यार या दोस्ती में ना पड़ना चाहता हो...बस किसी दूसरे की तय की गयी बंदिशों को ढोता जा रहा है...क्यूं...पता नहीं...या पता है....मुझे भी और उनको भी । इन सबके बीच और भी कोई है जो खुले पंछी की तरह आज़ाद है...उड़ रहा है....घूम रहा है...इतनी उंची उड़ान भरने को तैय्यार है जिसकी कल्पना ख़ुद उसने भी कभी नहीं की होगी ।
कितने ख़ूबसूरत लगते हैं यह सब मुझे....हर बार चेहरों पर नये भाव और नये तेवर लिये हुये....और मैं हर बार इन सबको उतने प्यार और मुस्कुराहट से देखती हूं और चाहती हूं कि वो सब आज़ाद रहें...ख़ूबसूरत रहें...उम्मीदों से भरे हों...अपनी हर तमन्ना पूरी करें... उन सब की ख़ुशहाली की दुवाओं के साथ....

                                             मैं....काया 

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